April 27, 2025

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राजकीय सेवा के बेलगाम डॉ. सलिल श्रीवास्तव समझ बैठा है खुद की फैमिली फ्रैंचाइजी

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“बेटे को जमीन, पत्नी को नर्सिंग होम और स्वयं को ‘सिस्टम का सुपरपॉवर’ – ऐसे है डॉ.सलिल

राजकीय सेवा को बेलगाम डॉ. सलिल श्रीवास्तव समझ बैठा है खुद की फैमिली फ्रैंचाइजी


सुलतानपुर।

विवादों की सुर्खियों ने रहने वाला राजकीय मेडिकल कॉलेज, सुलतानपुर के प्रिंसिपल डॉ. सलिल श्रीवास्तव ने यह बख़ूबी साबित कर दिया है कि अगर कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ठान ले, तो सरकारी सिस्टम को भी जेब में रखा जा सकता है — और वो भी बिना किसी दबाव के!
यहां इलाज कम, इन्वेस्टमेंट ज़्यादा होता है। डॉ. साहब ने कॉलेज की चाय की चुस्कियों से लेकर हाईवे किनारे ज़मीन की रजिस्ट्री तक, हर जगह अपने ‘विकास मॉडल’ का विस्तार किया। अमेठी से लेकर प्रदेश की राजधानी तक गाटा संख्याओं की ऐसी मालामाल मालिका खड़ी की है कि अब रजिस्ट्रार भी सोच में पड़ जाएं — “ये डॉक्टर हैं या डीलर “
पत्नी जी ने भी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी— कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है, उसी क्रम में डॉ. सलिल के पीछे है उनकी धर्मपत्नी डॉ. संगीता और उनका एक अल्ट्रासाउंड सेंटर/नर्सिंग होम! ताकि अगर कोई नियम बीमार पड़ जाए तो वहीं भर्ती कर इलाज किया जा सके….कहीं इस नर्सिंग होम पर प्राचार्य की कुर्सी मिलने के बाद अर्जित धन को ब्लैक & व्हाइट का इलाज तो नहीं होता….यह जांच का विषय है।
अब जब फाइलें खुलने लगीं, तो साहब ने गुमराह करते हुए चिकित्सकों के सम्मानित संगठन की आड़ ले लिया। जैसे ही भ्रष्टाचार की बर्फ पिघलने लगी, साहब ने ‘डॉक्टरी संगठन’ को गर्म पानी में डाल दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस, पोस्टर, और “मैं बेगुनाह हूं” की पुरानी कैसेट चला दी। डॉक्टरों का यूनिफॉर्म पहन कर खुद को निर्दोष बताने की पूरी कला भरते हुए डॉ. श्रीवास्तव आजकल पीएचडी कर रहे हैं। डॉ. सलिल श्रीवास्तव द्वारा कुछ प्रतिष्ठित और सम्मानित चिकित्सकों—जिन्हें समाज ‘धरती का भगवान’ मानता है—को संगठन के नाम पर गुमराह कर, अपने बचाव हेतु ढाल बनाने की कोशिश की जा रही है। यह चाल इसलिए है ताकि उन्हें भी अपनी ही ‘केटेगरी’ में खींचा जा सके। — यानी इज्ज़त से घसीट कर ‘इंक्वायरी ज़ोन’ में लाया जाए। पर याद रखिए, सब डॉक्टर एक जैसे नहीं होते, और न ही हर कुर्सी भ्रष्टाचार की चादर ओढ़ती है।
पर सवाल अब भी वहीं है

  1. मेडिकल कॉलेज है या पारिवारिक प्रॉपर्टी फॉर्म ?
  2. कुर्सी मिली राजकीय मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था संभालने के लिए या इन्वेस्टमेंट के लिए ?
  3. नियमों की किताब है या रद्दी की दुकान ?
    प्रशासन फिलहाल “देखो और सोचो” मुद्रा में है।।लगता है वो इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि अगला नर्सिंग होम किस रिश्तेदार के नाम जाएगा। और हो सकता है सरकार कोई नया अवॉर्ड शुरू करे– “राजकीय भ्रष्टाचार श्री सम्मान 2025”, जिसमें डॉ. साहब पहले नामित हों।
    अब ज़रूरत है एमआरआई (MRI) जांच की, ज़मीन, ज़मीर, नियुक्ति, और नेटवर्क– सबका MRI करिए, एक्सरे (X-ray) नहीं चलेगा साहब! और संगठन नहीं, जांच एजेंसियों को बोलिए–अब यह मामला सिर्फ संपत्ति का नहीं, लोकतंत्र की साख का है।
    और अंत में यदि मेरे या मेरे परिवार के साथ कोई अप्रत्याशित घटना घटती है, या किसी महिला अथवा अन्य व्यक्ति को आगे कर मेरे ऊपर कोई झूठा मुकदमा दर्ज कराया जाता है—जिससे मुझ पर मानसिक, सामाजिक या कानूनी दबाव बनाया जा सके—तो इसके लिए पूरी और एकमात्र जिम्मेदारी डॉ. सलिल श्रीवास्तव की होगी। क्योंकि जब सच लिखा जाता है, तो कुछ चेहरे आईने से डरने लगते हैं… और वही चेहरा आज सवालों के घेरे में है!
  4. आपके ही संघर्ष में सहयोग की आवश्यकता है!
    कभी आपने सोचा है, जब पद, संपत्ति और संगठन की मिलीभगत से सच को दबाने की कोशिश हो, तो वो कौन होगा जो आवाज़ उठाएगा ?
    उत्तर सिर्फ एक है – आप!
    आप क्या कर सकते हैं ?
    अगर आपके पास भी है ‘सलिल स्कैम’ से जुड़ी कोई सच्चाई –दस्तावेज़, रजिस्ट्री की कॉपी, स्क्रीनशॉट, ऑडियो, वीडियो, फोटो या फिर कोई भी विश्वसनीय जानकारी—तो उसे हमारे साथ साझा कीजिए WhatsApp पर: 9792769999,
    नाम नहीं बताएंगे। पहचान पूरी तरह गोपनीय रहेगी, पर सच को आवाज़ ज़रूर देंगे! क्योंकि ये लड़ाई सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है, ये लड़ाई है उस व्यवस्था के पुनरुद्धार की, जिसपर विश्वास कर मरीज अपनी जान सौंपते हैं। हमारी लड़ाई किसी समूह या संगठन से नहीं, उस ‘डीलरशिप’ के खिलाफ है जो ‘डॉक्टरी’ की आड़ में खेली जा रही है। उन कुर्सियों के खिलाफ है जो सेवा के नहीं, सौदे के केंद्र बन गई हैं। और इस लड़ाई में,हम अकेले नहीं हैं, हर वो इंसान जो ईमानदारी को महत्व देता है, इस आंदोलन का सिपाही है। तो आइए, आगे आइए, क्योंकि आज अगर हम चुप रहे, तो कल हर मेडिकल कॉलेज सिर्फ “पारिवारिक प्रॉपर्टी ऑफिस” बन जाएगा।

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