चिडियों की चहक ने नींद तोड़ दी–पढें मीरारविकुल का लेख–सपनों की उडान की ओर–#
1 min readसपनों की उड़ान की ओर
मीरा रविकुल
समय 4 बजे का अलार्म, चिड़ियों की चहक ने नींद तोड़ दी। आज रात देर से सोने के बावजूद भी आखिर जगना ही है। सुबह के कार्य को समाप्त कर विद्यालय पहुँचने के लिए स्कूटी से चल दी। कानों में ट्रेन की सीटी ने अपना वही रोज वाला सुर सुना ही दिया। पर मेरे पहुँचते ही रेलवे फाटक आखिर खुल गया। मन से देर हो जाने की बेचैनी कम हो गई क्योंकि आज एक घंटे पहले पहुँचना था। रोज आते-जाते यह रेलवे फाटक पर रुकना मेरे लिए या किसी के लिए भी वहाँ ड्यूटी पर लगे उन कर्मचारी लोगों पर क्रुद्ध होने का कारण होता है कि रेलवे फाटक जल्दी क्यों बंद कर देते हैं, और जल्दी क्यों नहीं खोलते। स्कूल पहुँची तो बच्चों के गुड मार्निंग ने जैसे सारी आशाएँ जगा दी हों। अब ईश्वर वंदना के सुर जैसे नई उमंग चेतना भर रहे हों, योग के नए-नए तरीके व कराटे के गुण, आत्मरक्षा की एक ऐसी शक्ति समाहित कर देता है कि मन में यही भावना होती है कि अपनी व दूसरों की सुरक्षा का जज्बा जरूर आ जाता है। गतिविधि कोई भी हो बस बच्चों के मन को प्रफुल्लित व ज्ञानवर्धन करने वाली होनी चाहिए। शायद आप समझ ही गए होगे कि गाँव में ज्ञान अर्जन के साथ रोजगार भी आवश्यक है जिससे उनका भरण-पोषण हो सके। इसी उद्देश्य को लेकर ही हमारे विद्यालय में सर्वागीण विकास करने का प्रयास किया जाता है। अपना छोटा सा थिएटर उठाया और पहुँच गई बच्चों के पास। कहानी सुनने के लिए सब तैयार थे और उत्साहित भी थे। आज इस पिटारे में कौन सी कहानी सुनने को मिलेगी। कहानी सुनते हुए अपने पुराने दिन सभी को याद आ जाते हैं जैसे नाना-नानी, दादा-दादी, जब हमें कहानी सुनाते थे गा-गाकर। घर फोरिया, चिरौवा-चिरई, सियार-सियारिन, राजा-रानी और न जाने कितनी ही कहानियाँ। ये कहानियाँ हमें नैतिक ज्ञान के साथ-साथ शैक्षिक परिवेशीय संस्कृति से परिचित तो कराती ही हैं साथ ही हमें कल्पनाशील एवं चिंतनशील भी बनाती हैं, जो बच्चों के मानसिक
विकास, योग, शारीरिक विकास, कला क्राफ्ट, कराटे, कौशल विकास, व्यावसायिक व आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
खण्ड शिक्षा अधिकारी सर व अभिभावकों के सहयोग से बच्चों को मेला देखने जाना था जिससे आज बच्चों का उत्साह एवं आत्मविश्वास देखने लायक था। छोटे बच्चों को समझाने पर कि अभी वे छोटे हैं, मान गए तो याद आ गया कि एक दिन एक बच्चे की अम्मा आई और बोली मैडम जी आप ऐसा कैसे का बताउत हो कि मोर लड़का-बिटिया तुम्हार कहा मान जात हैं। कहत हैं कि हमार मैडम जौनों कहती हैं सब अच्छा और सही कहती हैं। मैंने उन्हें बताया कि बच्चे रोज आने से कुछ न कुछ सीखते हैं। घर में काम तो हमेशा रहेगा। पढ़ाई तो समय पर ही करानी होगी। तो बोली कि हाँ मैडम जी सही कहती हऊ। मैडम जी अब या रोजै पढ़ें आई। नमस्ते मैडम जी, मैं जात हूँ, मोर बहुत काम परो है। और वो चली गई। छोटे बच्चों को ले जाने में दिक्कत होती तो समझा दिया कि बच्चो ! अभी तुम छोटे हो। एक भी बच्चे ने जिद नहीं की। मेले की तैयारी पहले से पूरी कर ली गई थी। ई-रिक्शा के द्वारा बच्चों को बांदा के शरद महोत्सव में ले जाना है। बच्चों को लेकर चल पड़े। आगे मेरी स्कूटी और पीछे ई-रिक्शे में एसएमसी अध्यक्ष श्रीमती ममता जी व शिक्षक चल रहे थे।
वाह! कितना अच्छा। अलग-अलग प्रकार के झूले, फेरिश व्हील, घोड़ा झूला, कार झूला, नाव झूला एक-एक करके सारे झूले सभी ने झूल लिए, लेकिन मन अभी भी नहीं भरा था। तभी ड्रैगन ट्रेन देखकर सभी बच्चे उछल पड़े वाह ! ड्रैगन ट्रेन ! बच्चे ड्रैगन ट्रेन की यात्रा के लिए अपनी बारी का इंतजार करने लगे। सब हाथ हिला-हिला कर ‘छुक छुक ट्रेन चले भालू मामा डिब्बे में ट्रेन चलाए पटरी में’ शायद कुछ ऐसे ही बोल थे। बच्चों की आँखों में चमक व खुशी झलक रही थी। उन्हें देखकर सभी को अपना बचपन याद आ ही जायेगा। मेरे साथ भी यही हुआ। मैं भी बचपन के दिनों में वापस लौट गई, तभी मेरी सहायक शिक्षिका ने आवाज लगाई कि वह वीडियो बना रही है। मैंने कहा, ‘हाँ-हाँ सबका वीडियो बन रहा हैं।’ अब दूसरे बच्चों को ट्रेन में घूमने की बारी आयी। ड्रैगन ट्रेन देखकर बच्चे इतने उत्साहित थे कि वह सब ट्रेन के पास खड़े हो गए। फिर उनका इंतजार भी खत्म हुआ। कुछ बच्चे गाना गुनगुनाने लगे। ‘छुक-छुक-छुक चलती ट्रेन। यह सुनकर वहाँ के लोग हँसी नही रोक सके। सब बच्चे ट्रेन का आनंद ले रहे थे।
हाथ हिलाते हुए हँसते-खिलखिलाते ट्रेन का सफर खत्म हुआ। सामने ही होमगार्ड ऑफिस था। बच्चों को भ्रमण के उपरांत होमगार्ड आफिस ले जाकर उनसे मिलाया। सभी बच्चे महिला होमगार्ड से भी मिले और उनके साथ तस्वीर भी खिंचवाई। बच्चों के मन में पुलिस बनने की प्रेरणा जाग्रत हुई। बच्चों ने चौराहे पर यातायात ट्रैफिक पुलिस द्वारा यातायात नियमों की जानकारी प्राप्त की। इससे बच्चों में रोड के नियमों की समझ विकसित हुई, जो बेहद जरूरी है। सभी लोग ऑक्सीजन पार्क पहुँचे पर पार्क को बंद देखकर सभी के मन उदास हो गए लेकिन गार्ड से बात करने पर पार्क खोल दिया गया। बच्चों की जैसे खुशी का ठिकाना न रहा। बच्चों के पेट में चूहे दौड़ रहे होंगे, ये समझकर कर कहा- “बच्च्चो ! कुछ खा लो।” सभी ने अपने लंच पैकेट खोल स्वल्पाहार किया। अब गोल गप्पे, बर्गर, चाउमीन को देख बच्चों का मन मचलने लगा। अब रोकना सही भी न था क्योंकि गाँव में ये सब मिलना मुश्किल होता है तो मैंने कहा चलो ठेले के पास। फिर सब अपने मनपसंद फूड खाकर पार्क घूमने चल पड़े। पूरे पार्क में आकर्षण का केंद्र झंडा देख खुश हुए।
बच्चे अब झूले की ओर चल पड़े। दौड़-दौड़ कर पूरे पार्क को निहार रहे थे। आपस में बातें कर रहे थे। कोई फिसलपट्टी पर फिसलते तो कोई रिंग झूला तो कोई हर प्रकार के झूले में झूलने को बेताब थे। बालमन होता ही ऐसा है। नवाब टैंक देखकर बोले कि इतना बड़ा तालाब मैम किसने बनवाया होगा ? कई सवाल थे बच्चों के मन में। सबको एकत्र कर तालाब के थोड़ा पास ले जाकर उन्हें बाँदा के नवाब की कहानी बताई ‘जब बाँदा में सूखा पड़ा था, तब बाँदा के नवाब (जुल्फिकार अली बहादुर) ने लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ‘काम के बदले अनाज’ योजना से इस तालाब की खुदाई करवाई, जिसमे हजारों लोगों को रोजगार मिला। तालाब खुदाई का काम दिन-रात चला था ताकि जो लोग झिझक या संकोयवश दिन में काम न कर सकें वे रात में खुदाई करें। आज सभी लोग इसे नवाब टैंक के नाम से जानते है। बच्चो ! नेकी करने से कभी भी पीछे नही रहना चाहिए। कभी न कभी उसका प्रतिफल अवश्य मिलता है। बच्चों को फिर एकत्र कर नर्सरी दिखाई और उसके बारे में बताया। आसपास हरे-भरे वातावरण को देखकर बच्चों में प्रकृति प्रेम का भाव उत्पन हुआ। बच्चों को बताया कैसे तरह-तरह के पौधे तैयार कराए जाते हैं। इन पौधों को बेचा जाता है। यहाँ खाद जैविक खाद और कम्पोस्ट खाद भी तैयार की जाती है। ये खाद हमारे पेड़-पौधों के लिए बहुत ही उपयोगी होती हैं। जिससे ये मिट्टी को उपजाऊ बना फसलों को पैदावार बढ़ा देती हैं। खादों को भी उचित दर पर बेचा जाता है। इनसे रोजगार के साथ आर्थिक लाभ भी मिलता है। बच्चे अभी भी घर जाने को एक बार भी नहीं कह रहे थे, लेकिन फिर भी ई-रिक्शा को इशारा किया और वो हाजिर हो गया। फिर सारे बच्चे बैठ गए और उन्हें उनके घर तक छोड़ना था। सभी बच्चे रास्ते भर सवाल-जवाब करते हुए गाँव आ गए। सभी को उनके घर तक पहुँचाया गया। अब हम लोग भी अपने अपने घर को चल पड़े। शाम हो गई थी। मन खुश था कि हम सभी बच्चों को घुमाकर सकुशल घर तक पहुँचा सके। शाम को आदरणीय श्रीमान् बीईओ सर जी ने भ्रमण की सराहना करते हुए बधाई दी कि आप लोगों ने शैक्षिक भ्रमण कराते हुए बच्चों को उनके घर तक पहुँचाया।
यह दिन बच्चों के लिए सपने के सच होने जैसा रहा। उनके पंखों को उड़ान मिले वो नित नई ऊँचाइयों की ओर अग्रसर हो अपना रोजगारपरक उज्ज्वल भविष्य बना सकें, यही हम शिक्षकों का दायित्व है।
संपर्क : मीरा रविकुल (प्र.अ.),
प्राथमिक विद्यालय कतरावल 1 क्षैत्र बड़ोखर खुर्द, बाँदा
ब्लॉक अध्यक्ष. उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ बाँदा. इकाई बडोखर खुर्द
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