समाजसेवी सबल सिंह ने आदर्श ग्राम बड़ोखर खुर्द में बच्चियों के महबुलिया विसर्जन में पहुंचकर बढ़ाया उनका हौसला
1 min readसमाजसेवी सबल सिंह ने आदर्श ग्राम बड़ोखर खुर्द में बच्चियों के महबुलिया विसर्जन में पहुंचकर बढ़ाया उनका हौसला
बड़ोखर खुर्द बाॅंदा, 24 सितंबर 2024
पूर्व जिला क्रीड़ा अधिकारी एवं समाज के संस्कार निर्माण के लिये सदैव समर्पित मां की गोद संस्कारशाला के संस्थापक सबल सिंह ने आज आदर्श ग्राम बड़ोखर खुर्द बाॅंदा में नन्ही मुन्नी बच्चियों द्वारा बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत महबुलिया समारोह में पहुंचकर न केवल उनका हौसला बढ़ाया अपितु महबुलिया क्यों मनाई जाती है? इस पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया कि पितृ विसर्जन के पन्द्रह दिनों तक महबुलिया समारोह बुंदेलखंड में मनाये जाने की अत्यंत ही प्राचीन परम्परा है जो धीरे-धीरे विलुप्तता की ओर है जिसका संरक्षण अत्यंत ही आवश्यक है। सबल सिंह जी ने भेंटवार्ता में बताया कि
पितृ तर्पण में धार्मिक क्रिया कर्म के दुनिया भर मे अपनाए जाने वाले विभिन्न तौर तरीकों से अलग उत्तर भारत के बुंदेलखंड में प्रचलित महबुलिया एक ऐसी अनूठी परंपरा है जिसे घर के बुजुर्गों के स्थान पर छोटे बच्चे इसे सम्पादित करते हैं। समय में बदलाव के साथ हालांकि अब यह परम्परा यहां गांवों तक ही सिमट चुकी है।
बुंदेलखंड में लोक जीवन के विविध रंगों में पितृपक्ष पर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भी अंदाज अलग है। पुरखों के तर्पण के लिए यहाॅं पूजन,अनुष्ठान,श्राद्ध आदि के आयोजनों के अतिरिक्त बच्चों ,बालिकाओं की महबुलिया पूजा बेहद खास है जो नई पीढ़ी को संस्कार सिखाती है। पूरे पंद्रह दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में गोधूलि वेला पर हर रोज पितृ आवाहन और विसर्जन के साथ इसका आयोजन होता है। इस दौरान यहां के गाॅंवों की गलियाॅं तथा चौबारे में बच्चों की मीठी तोतली आवाज में गाए जाने वाले महबुलिया के पारम्परिक लोक गीतों से झंकृत हो उठते हैं। समूचे विंध्य क्षेत्र में लोकपर्व का दर्जा प्राप्त महबुलिया की पूजा का भी अपना अलग ही तरीका है।
बच्चे कई समूहों में बंटकर इसका आयोजन करते हैं। महबुल को एक कांटेदार झाड़ में रंग बिरंगे फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है। विधिवत पूजन के उपरान्त उक्त सजे हुए झाड़ को बच्चे गाते बजाते हुए गांव के किसी तालाब या पोखर में ले जाते हैं जहां फूलों को कांटों से अलग कर पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।महबुलिया के विसर्जन के उपरांत वापसी में यह बच्चे राहगीरों को भीगी हुई चने की दाल और लाई का प्रसाद बांटते हैं। प्रसाद सभी बच्चे अपने घरों से अलग अलग लाते हैं।
अर्थात महबुलिया को पूरे बुंदेलखंड में बालिकाओं द्वारा उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बुंदेलखंड की इस सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की विशेष आवश्यकता है अन्यथा कुछ वर्षों बाद इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाऐगी।
उमंग सिंह ब्यूरो चीफ बाॅंदा
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