नेपाल यात्रा का वृत्तांत.मीरा रविकुल प्रधानाध्यापिका.ब्लॉक अध्यक्ष. उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ.बाँदा. इकाई बडोखर खुर्द की कलम से–#
1 min readमेरी नेपाल यात्रा
मीरा रविकुल
सुबह से ही मन उत्साहित था कि इतने वर्षों तक घंटों मेहनत करने के बाद इसका प्रतिफल इस यात्रा से मिलने वाला था, साथ ही बेचैनी भी हो रही थी। इतनी लंबी यात्रा पर माँ-पापा से दूर पहली बार जाने की तैयारी कर तो ली थी परन्तु मन, यात्रा कैसी होगी, क्या-क्या परेशानियाँ हो सकती हैं आदि, खयालों के ताने-बानों में उलझा हुआ था। लेकिन पापा ने समझाया तैयारी करना और मुकाम तक पहुँचना हौसला रखने वालों को ही मिलता है। मन ख्वाबों के संसार में गोते लगा रहा था (काम करते वक्त गुनगुनाने की आदत जिसमें इंसान किसी और ही दुनिया में खो जाता है)। सारी तैयारी शिवम सर ने पहले ही पूरी कर ली थी। सभी लोग स्टेशन की ओर चल दिए, 20 मिनट इंतजार के बाद ट्रेन आई और सभी ट्रेन पर चढ़ गए। सर ने कहा अपनी चादर निकालो और सब लोग अपनी जगह पर सो जाओ। जब उतरना होगा बता दूँगा। सब खामोश हो चादरों व तकिए की ओट से सोने का एहसास कराने लगे।
हम प्रयागराज आ चुके थे, प्रयागनगरी को संगम भी कहा जाता है। सर कुछ बोलते हुए नीचे उतर गए। पूरे भारत के हर क्षेत्र के अलग अलग जगह से आए हुए सर (कराटे मास्टर ट्रेनर) व बच्चे भी आ चुके थे। सर ने बताया कि सारी टीमें आ चुकी हैं। अब हम बनारस की धरती पर कदम रख चुके थे। बनारस का नाम आते ही बाबा विश्वनाथ, गंगा घाट, मंदिर की कल्पना मन भक्तिमय बना देती है। मन ही मन बनारस की पवित्र धरती माँ गंगा की पावन चरणों में नमन किया। अर्जुन सिंघले (नेपाल), हेमंत श्रीवास्तव (झाँसी), नरेंद्र उपाध्याय (देवरिया), गोविंद पांडे (बनारस), मनीष श्रीवास्तव (झाँसी), हीरालाल पन्नालाल (झाँसी), संजय मंगारे (मुंबई) आदि सर आ चुके थे। हमारे मास्टर ट्रेनर व परीक्षक टीम से मिलकर अच्छा लगा। हमने भी कराटे की भाषा में सभी से नमस्कार किया। अब हमें आगे सुनौली बॉर्डर जाना था। बस यहीं से थी। सर ने एक मेडिकल स्टोर की ओर इशारा किया
जिसे भी उल्टी आती हो, वह मेडिसिन ले ले। सबने अपनी जरूरत कशारा किया दवा ली। कैंप का बैनर देखकर सभी खुशी हो उछल पड़े। कुछ ही दूर पहुंचे थे कि आर्मी बॉर्डर फोर्स बस पर चढ़ चुकी थी और सभी को नीचे उतारने लगा ये कि इशारा किया कि यह चेकिंग का हिस्सा है। सब नीचे उतर गाए। सब का सामान अब सब की निगाहों से गुप्त नहीं रहा क्योंकि पहली बार इस तरह की चेकिंग देखी थी। सामान को बहुत ही बारीकी से चेक किया जा रहा था। आधे घंटे से ज्यादा चेकिंग के बाद फिर बॉर्डर पहुँचे। सभी ने अपनी जरूरत के अनुसार रुपए बदले और फिर आगे नेपाल बॉर्डर पर पार किया। नेपाल एक बेहद खूबसूरत दक्षिण एशियाई राष्ट्र नेपाल के 81.3 पर्सेट लोग हिंदू धर्मावलंबी हैं। नेपाल विश्व के प्रतिशत के आधार पर हिंदू धर्मालंबियों में सबसे बड़ा राष्ट्र है। यहाँ की राजभाषा नेपाली है। नेपाल में भारतीय, तिब्बती और मंगोली संस्कृतियों का प्रभाव भी देखा जा सकता है। नेपाल की संस्कृति विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृतियों में से एक है। नेपाली पोशाक में दौरा शुरुवाल, जिसे आमतौर पर लाबडा शुरुवाल भी कहा जाता है। यहाँ का मुख्य भोजन चावल है। नेपाल का सबसे खूबसूरत स्थान पोखरा जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अन्नपूर्णा क्षेत्र का प्रवेश द्वार होने के लिए प्रसिद्ध है। यह कई अलग-अलग खूबसूरत झीलों का घर भी है। पोखरा अपनी साहसिक गतिविधियों जैसे- नौकायन, ट्रैकिंग, राफ्टिंग, कैनोइंग और बंजी जैम्पिंग के लिए प्रसिद्ध है। हमारा कैंप लगभग 100 मीटर दूरी पर है। सर ने कहा यहीं से कैंप तक पहुँचना होगा। हमने अपना सामान पकड़ा और कैंप तक चले। सामने हरियाली छटा ऐसी थी मानो जैसे प्रकृति ने हमारे स्वागत के लिए खूबसूरती की चादर ओढ़े रखी हो। कैंप के अंदर पहुंचते ही बस 15 मिनट का टाइम दिया गया। फ्रेश अप होने के बाद 1 मिनट के पहले ही अलार्म बज चुका था, जहाँ पर कुछ गाइडलाइन दी जानी थी। क्या होगा कैसे होगा आदि।
1 घंटे बाद फिर एकत्र होने के लिए कहा गया। लंच के लिए अलार्म (सीटी) बज चुका था। लंच के लिए तैयार थे, क्योंकि सफर लंबा खूबसूरत तो था, लेकिन थकान बहुत हो चुकी थी। सब जल्दी-जल्दी सोना चाहते थे। खाने में तो चावल सब्जी दाल थी रोटी तो नाम के लिए ही मिलेगी क्योंकि आटा भारत से ही आया था। अब
सब बिस्तर लगाकर सोने चले। व्यवस्था बहुत ही अच्छी थी। लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग हॉल/कमरे दिए गए थे। पास में ही दो छोटे ब्लू बेल्ट बच्चे थे, उन्हे नींद नहीं आ रही थी। उनसे बातें करते करते पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गई। सुबह इतनी उम्दा होगी कि अकल्पनीय सुन्दर ही कह सकते है। रात में 2 बजे जगा दिया गया। आपको कैंप के मैदान में बुलाया जा रहा है। सभी निर्देशानुसार सीटी की आवाज से उपस्थित हो गए। एग्जाम के लिए लाइन में खड़ा कर दिया गया, नींद में परीक्षा। नंबर याद आते ही नींद मानो कोसों दूर हो गई हो। कुछ बच्चे जो छोटे थे सही से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे लेकिन सर की तेज आवाज ने सबको अलर्ट कर दिया।
नींद में परीक्षा देना आप सोच भी नहीं सकते हो कैसा लग रहा होगा। परीक्षा इतनी देर चली कि भोर ने धवल चाँदनी को ढक नई सुनहरी रश्मियों ने स्पर्श कर रही हों। सुबह का पानी इतना ठंडा की कुल्फी जमा लो। रसोइया ने बताया कि अक्सर ही नल की पाइप भी फट जाते हैं। बिजली आने-जाने का कोई समय भी नहीं। कुछ देर बाद सभी मैदान पर थे। कुछ दिशा निर्देशों के बाद सब अपने-अपने कमरों में चले गए। हिमालय की सबसे ऊँची चोटी जिसकी ऊँचाई लगभग 8848 मीटर यानी कि 29029 फीट है जो पूरी तरह से बर्फ ही बर्फ से आच्छादित हैं। सूर्य की चमकती कनक रश्मियों की ओढ़नी ओढ़े दुल्हन सी सजी सँवरी बैठी हो। नाश्ता कर सभी मैदान में थे।
परीक्षा प्रारंभ हो चुकी थी। हमारे मास्टर ट्रेनर ने प्रश्नों की झड़ी लगा रखी थी चूके नहीं कि आउट। यह परीक्षा शारीरिक, मानसिक, तकनीकी विकास की है जो हर मुश्किल में आपको लड़ने व आत्मरक्षा की सीख देती है।
सबसे पहले एक बहुत ही ऊँची पहाड़ी पर बने विंध्यवासिनी मंदिर माँ दिव्य शक्ति के द्वार पर थे। माँ का अद्भुत मंदिर काठ के विशाल पट से सुशोभित भव्यता का एहसास कराता है। कहते हैं माँ को नेपाल के राजा सिद्ध नारायण शाह मिर्जापुर से इन देवी को नेपाल लेकर आए थे। जिसे पोखरा में मन्दिर बनाकर इनकी स्थापना की गई। महिमा अपरम्पार है जो एक शक्ति का संचार करती है। यहाँ से पोखरा का नजारा भी आनंदित करने वाला है।
बोटैनिकल गार्डन में औषधीय पौधे और गार्डेन की खूबसूरत सुंदरता ही ऐसी है एक-एक पौधा दिव्य है। इसकी स्थापना 28 अक्टूबर, 1962 को (कार्तिक द्वादशी संवत् 2019) को राजा महेंद्र सिंह जी के द्वारा हुई थी। ब्रिटिश वास्तुकारों द्वारा डिजाइन किया गया है, यह लगभग 82 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इसकी खूबसूरती को देखकर प्रकृति के प्रति जो प्रेम पल्लवित हो रहा था। वर्षा ने कहा चलो।
चल दिए पशुपतिनाथ मंदिर की ओर। पशुपतिनाथ मंदिर शुद्ध नेपाली कला का अद्भुत नजारा। चारमुखी शिव विराजे, जिसके पीछे बागमती नदी, जिसे देखकर मानो अपने यहाँ काशी विश्वनाथ नगरी जैसा आध्यात्मिक संस्कार।
पूजा सामग्री रुद्राक्ष, स्फटिक, शालिग्राम से यह बाजार पटा पड़ा है। कुछ ने शालिग्राम कुछ ने स्फटिक माला कुछ ने अपनी जरूरत की सामग्री खरीदी। दुकानदार ने बताया कि इसके अंदर सोने के भगवान होते हैं। कुछ टूटे हुए शालीग्राम को बार बार दिखाकर प्रमाणिकता देने की कोशिश कर रहे थे। हाँ ये बाजार है बाबू। यहाँ सब बिकता है और एक हसीं फूट पड़ी।
बुद्ध संस्कृति को समाहित किए बौद्धनाथ व स्वयंभूनाथ दोनों ही स्तूप बौद्ध धर्म को मानने वालों का सबसे बड़ा केन्द्र है। काठमांडू के पूर्व में बना बौद्धनाथ स्तूप दुनिया के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है। यह बुद्ध नगरी भी कही जाती है।
म्यूजियम धरोहरों का टिकरी संस्कृति का केंद्र। बौद्ध स्तूप देखने के बाद फेवा झील की ओर बढ़े सबका बहुत मन था कि नाव की सैर करने का, परन्तु नाव वाले ने मना कर दिया। बोला ! केताबो ? (कहाँ से हो) इंडिया। हवा बहुत तेज थी सब कुछ ले जाने को आतुर। नहीं जा सकते। किनारे लगी नाव में बैठकर ही झील की प्राकृतिक सुंदरता अनुभव किया जा सकता है। ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है जिसे देखने के लिए शाम के समय बेहद भीड़ आती है। नेपाली पहनावे में सुन्दर महिलाएँ बेहद ही खूबसूरत लग रही थीं। पुरुषों की वेशभूषा साधारण ही है।
इसी झील के एक द्वीप पर बाराही मन्दिर स्थित है। इसके पारदर्शी जल में माँ अन्नपूर्णा व धौलगिरी की पर्वत श्रृंखलाओं का प्रतिबिंब साफ झलकता है। मन तो कर रहा था कि अभी रुके पर तेज हवा के कारण चल दिए कैंप की ओर।
रात हो चुकी थी। परीक्षा आज न होकर कल होगी, सूचना सुन छोटे बच्चे तो उछल पड़े। अगले दिन पेपर शुरु होने वाला था थोड़ी देर में। वैसे तो यह मार्शल आर्ट कला बहुत ही पुरानी है।
इसका इसका अर्थ युद्ध कला से है। इसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान केरल में हुई थी। कहते हैं इसका इतिहास लगभग 3000 साल पुराना है। यह अभी भी केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्यों में प्रचलित है। कलारी उस स्थान को कहा जाता है जिस जगह पर मार्शल आर्ट को सखाया जाता है। ऋषि अगस्त्य इसके संरक्षक, संस्थापक माने जाते है। कुछ लोले का मानना है कि बौद्ध संत कलारी मास्टर बोधिधर्मन ने ही चीन जाकर कुंडू को जन्म दिया। चीन मार्शल आर्ट के जनक चाइनीज वांग झेंगझी को मानते है। उनका मानना है कि वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस कला को विकसित किया। कहते तो यह भी हैं कि भारतीय बौद्ध संत कलारी मास्टर बोधिधर्मन ने ही चीन में जाकर कुंग फू को जन्म दिया। मार्शल आर्ट के विभिन्न प्रकार हैं जैसे की कुंग्फू, कराटे, जूडो, ताईक्वांडो आदि। तकनीकी के आधार पर इसे सशस्त्र और निहत्था दो तरह से सीख सकते हैं। खेलों में रेसलिंग, मुष्टि युद्ध, वरमा कलाई, नियुद्ध, मल्ल युद्ध, कुडू वरासाई, लाठी, मल्लखंभ आदि नामों से भी खेल प्रचलित नाम है। आजकल मार्शल आर्ट फिल्मों में भी प्रचलित है।
इसके सीखने की उम्र 5 से 7 वर्ष में शुरू की जा सकती है। इसके सीखने के लिए शारीरिक लचीलापन होना बहुत ही आवश्यक है। परीक्षा समाप्त होने के साथ ही शिवम सर ने सूचना दी कि सभी हवाई यात्रा से काठमांडू जाएँगे। थोड़ी देर में खबर आई कि अधिक बर्फ गिरने के कारण रास्ता बंद हो चुका है नहीं जा सकते। फैसला लिया गया कि फाइनल एग्जाम आज होगा। कल टाइम रहा तो घुमा दिया जाएगा वरना कल सर्टिफिकेट/बैच/बेल्ट वितरण कार्य जारी रहेगा। सभी कैंप के बड़े से हॉल में एकत्र होकर अपनी अपनी कठिन पारी खेल रहे थे। जीत हार सब आज तय होना था।
मंगला सूचना लाई कि कल रिजल्ट वितरण होना है जिस उद्देश्य के साथ हम यात्रा पर आए थे उसका परिणाम कैंप के लगभग 50 परीक्षार्थियों को मिलने वाला था।
सुबह रिजल्ट घोषित होने वाला है साढ़े आठ बजे हॉल में एकत्र होना है। कौन सी बेल्ट की उपाधि किसको मिलने वाली है? इन्ही कौतुहल में जूझता मन सब लाइन से कतारबद्ध क्रमशः नाम लेते ही बेचैनी बढ़ जाती। बेल्ट को पहनते
शायद आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि ये अचीवमेंट क्या मायने रखता है। 5 से 10 वर्षों की कठिन तपस्या, मेहनत, धैर्य, मनोबल के उपरांत हाथों में सर्टिफिकेट प्राप्त करते हुए फोटो कैमरे में कैद हो रही थी। उन पलों को अविस्मरणीय भी कहा जा सकता है। सभी अपनी यूनिफॉर्म में प्रदान किए गए बेल्ट के साथ ब्लैक बेल्ट की उपाधि सर्टिफिकेट के साथ सभी के साथ ग्रुप फोटो लिया गया। सुखद एहसास के साथ सभी को यात्रा को भारत की ओर ले जा रही तेज बारिश के साथ बस में बैठे। रात के अंधेरे में जुगनू की टिमटिमाती रोशनी से होते पीछे छूटते घाटियों, वादियों, घुमावदार, सकरे खतरनाक रास्तों से गुजरने भर से हमारे प्राण काँप उठते हैं।
भारतीय सीमा में मनी एक्सचेंज के उपरांत लोगों के खरीददारी बॉर्डर पर भी जारी रखी और अपनी भारतीय मुद्रा के नोटों को बदलकर ट्रेन के सफर के साथ बनारस, प्रयागराज होते गंतव्य की ओर चले
सम्पर्क : नाम मीरा रविकुल (प्र०अ०)
प्राथमिक विद्यालय कतरावल 1, क्षेत्र बड़ोखर खुर्द, बाँदा।
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