प्लास्टिक के बर्तनों ने छीना कुम्हार व कसगर का पुश्तैनी धंधा
1 min readप्लास्टिक के बर्तनों ने छीना कुम्हार व कसगर का पुश्तैनी धंधा
यह समुदाय आजादी से आज तक झुग्गी-झोपड़ी में रहने को है मजबूर।
कर्नलगंज,गोण्डा।
तहसील क्षेत्र के विभिन्न कस्बों व ग्रामीण इलाकों सहित पूरे जिले व प्रदेश में मिट्टी के दिए बनाकर दूसरे के घरों को रोशन करने वाले कुम्हार समुदाय के लोग आजादी के 76 वर्ष बीतने के बाद भी विकास की रोशनी से महरूम हैं। आधुनिकता के दौर में कुल्हड़ व दिया के बजाय प्लास्टिक के गिलास व मिट्टी के कलश की जगह स्टील के कलश व इलेक्ट्रानिक कुमकुमी झालरों की चलन ने कुम्हारों व कसगर बिरादरी के रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। पुश्तैनी धंधा होने के नाते महंगाई के दौर में मिट्टी के दिए,खिलौने,बर्तन आदि बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले कुम्हार व कसगर बिरादरी को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है। महंगाई के चलते मिट्टी के बर्तन को पकाने के लिए ईंधन जुटाना काफी मुश्किल हो गया है। बता दें कि पहले बर्तन को बनाने के लिए दूर-दराज से मिट्टी को खच्चर के जरिए घर लाते थे लेकिन महंगाई के चलते अब खच्चर भी पालना मुश्किल हो गया है। मेहनत की बात करें तो मिट्टी लाने के बाद उसे कंकड़ रहित करके खूब गूंथना पड़ता है,जिसके लिए पूरे परिवार को मेहनत करनी होती है। उसके बाद दोनों उंगलियों के सहारे चाक पर मिट्टी के दिए, खिलौने,कलश,बर्तन आदि तमाम वस्तुओं को बनाया जाता है। फिर पकाने के लिए भठ्ठी में रखना होता है जिसमें काफी ईंधन की आवश्यकता पड़ती है। कर्नलगंज कस्बे के मोहल्ला कसगरान के कसगर बिरादरी के लोगों का कहना है कि इस महंगाई के दौर में बर्तन को पकाने के लिए कोयला, लकड़ी, कंडे की कीमत में बेतहाशा बढ़ोत्तरी से हिम्मत नही जुटा पा रहा हूं। वहीं परिवार के युवा वर्ग का इस काम से मोहभंग हो चुका है। अब वह प्रदेश जाकर अन्य कामों में रूचि लेकर रोजी रोटी के लिए काम करना ज्यादा पसंद करते हैं। वहीं पर इस आधुनिक युग में बाजारों में प्लास्टिक के सामान व इलेक्ट्रानिक के झालरों के आ जाने से मिट्टी के दिए व बर्तन सिर्फ रस्म अदायगी के लिए इस्तेमाल की जाती है,जिसके चलते पुश्तैनी धंधा धीरे धीरे समाप्त होते दिख रहा है। उल्लेखनीय है कि हिन्दू समुदाय में कुम्हार और मुस्लिम समुदाय में कसगर बिरादरी के लोग मिट्टी को गूंथकर चाक के सहारे मिट्टी के दिए,सुराही,खिलौने बनाने की अद्भुत कला उनके उंगली व घूमते हुए चाक से बनकर निकलती है। इन्हीं कसगर और कुम्हार के द्वारा बनाए गए मिट्टी के दिए जलाकर भले ही लोग दीपावली मे अपने घरों को जगमगाते हों लेकिन अब भी इन बिरादरी के लोगों का विकास नही हो सका है वह आज भी ज्यादातर झुग्गी झोपड़ियों में जीवन यापन करने को मजबूर हैं।झुग्गी झोपड़ियों में गुजर बसर करने वाले कुम्हारों व कसगर परिवारों को एक अदद आवास व रोजगार के लिए मदद की दरकार है।